वडोदरा में पुल गिरा: क्या ये सिर्फ हादसा है या बीजेपी सरकार की खुली नाकामी?



गुजरात के वडोदरा शहर में एक पुल गिर गया। यह कोई पहली बार नहीं हुआ है, लेकिन हर बार की तरह इसे “दुर्घटना” कहकर भुला दिया जाएगा। मगर इस बार सवाल उठाना जरूरी है – क्या ये हादसा सच में अचानक हुआ, या फिर लापरवाही, भ्रष्टाचार और राजनीतिक दिखावे की पोल खुल गई?

जब भी कोई पुल गिरता है, सरकार की पहली प्रतिक्रिया होती है – “हम जांच करेंगे।” लेकिन क्या कभी किसी ने उन जांचों का नतीजा देखा है? क्या कोई बड़ा नेता, ठेकेदार या अफसर जेल गया? नहीं। और यही इस देश की सबसे बड़ी त्रासदी है।

वडोदरा में जो पुल गिरा, वह कोई सौ साल पुरानी संरचना नहीं थी। और अगर थी भी, तो सरकार क्या कर रही थी? बीजेपी पिछले कई वर्षों से गुजरात में सत्ता में है। उन्होंने हर चुनाव में ‘गुजरात मॉडल’ की तारीफ की। सवाल ये है कि क्या यही है वो मॉडल? जहां पुल गिरते हैं, अस्पतालों में ऑक्सीजन खत्म हो जाती है, और शहर जलमग्न हो जाते हैं?

हमारे देश में इंफ्रास्ट्रक्चर का मतलब है बजट पास कराना, टेंडर देना, और फिर मोटा कमीशन। ठेकेदार सस्ता माल लगाता है, अफसर आंखें बंद कर साइन कर देता है, नेता रिबन काटकर फोटो खिंचवा लेता है – और फिर जनता पर छोड़ दिया जाता है कि वे उसी पुल पर भरोसा करें।

इस वडोदरा हादसे में भी कुछ ऐसा ही हुआ होगा। लोग मरे, घायल हुए – और सरकार की संवेदनशीलता कहाँ है? मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल ने बयान दिया, लेकिन क्या वो पुल के नीचे दबे लोगों की जान लौटा सकते हैं? क्या वो अफसरों को सस्पेंड करके जनता का भरोसा लौटा सकते हैं?

और सबसे बड़ी बात – बीजेपी की राजनीति सिर्फ प्रचार पर आधारित हो गई है। 100 करोड़ का कार्यक्रम होगा, 100 रुपए का काम नहीं होगा। सड़कें चमकती हैं जब पीएम आने वाले हों, और बाकी समय वहां गड्ढे होते हैं। अब ये “गड्ढा” एक पुल में तब्दील हो गया, जो लोगों को निगल गया।

बीजेपी के पास संसाधन हैं, सत्ता है, लेकिन क्या वो जिम्मेदारी भी निभाएंगे? यही सवाल है। हर बार दोष किसी छोटे अफसर पर डाल दिया जाता है, असली चेहरे बच निकलते हैं। पुल गिरा, जांच हुई, रिपोर्ट बनी, और फिर… सब शांत।

इस लेख में मेरा स्पष्ट मत है – इस हादसे की पूरी जिम्मेदारी गुजरात की बीजेपी सरकार की है। क्यों नहीं उन्होंने समय रहते निरीक्षण करवाया? क्यों नहीं रखरखाव के लिए बजट का इस्तेमाल ठीक से किया गया? क्यों नहीं पुल की हालत पर जनता को जानकारी दी गई?

जो लोग इस सरकार को आंख मूंदकर समर्थन करते हैं, उन्हें यह समझना होगा कि समर्थन अंधा नहीं होना चाहिए। अगर कोई सरकार विकास के नाम पर जान से खिलवाड़ करती है, तो वो सरकार नहीं, एक संवेदनहीन व्यवस्था बन जाती है।

अब समय आ गया है कि सिर्फ पुल नहीं, पूरी व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए। नेताओं को जवाबदेह बनाया जाए, ठेकेदारों पर कड़ी कार्यवाही हो, और सबसे जरूरी – जनता सवाल पूछना सीखे।

वडोदरा की घटना कोई प्राकृतिक आपदा नहीं थी। ये एक “मानव निर्मित” हादसा था। और जब तक हम इन हादसों की जड़ में जाकर सरकारों से जवाब नहीं मांगेंगे, तब तक पुल गिरते रहेंगे, लोग मरते रहेंगे, और सत्ता मुस्कराती रहेगी।

और हां, ये मत भूलिए – अगली बार जब कोई नेता “विकास” का नारा दे, तो पहले उससे पूछिए कि वो पुल गिरने का जवाब देगा या नहीं।

Leave a Comment